विश्व में अगर arthritis की इलाज की बात करें तो केवल आयुर्वेद में ही इसका पूर्ण इलाज संभव है | आयुर्वेद इलाज गठिया को पूरी तरह जड़ से ख़त्म करने में सक्षम है | अन्य पद्धतियों में गठिया का इलाज केवल कुछ हद तक है | गठिया आज के दौर में बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है | आज से 30-40 वर्ष पूर्ण गठिया 45 – 50 साल के लोगो में पाया जाता है | आज हम देखते है की 10 – 12 साल बच्चों से लेकर पूरी युवा पीढ़ी में पाया जा रहा है | गठिया होने के मुख्य कारण तंत्रिका (नसों) प्रणाली में अवरुद्ध आना यानि पुरे शरीर में खून का बहाव सुचारु रूप से न हो पाना, साथ ही शरीर में पोषक तत्व की अत्यधिक कमी होने की वजह से यह रोग विशाल रूप ले लेता है और रोगी लम्बे समय तक इस रोग से पीड़ित रहता है |
पोषक तत्व: vitamins Vitamins, minerals, fatty liver, vitamin A, Vitamin B, Vitamin D गठिया क्या है?गठिया को हम जोड़ो का दर्द, शरीर में एढंन (अकड़न ) के साथ – साथ नस और पेरो की उंगली के मुड़ने के रूप में जानते है इसमे रोगी ठंडी तासीर वाली भोजन लेने पर शरीर में दर्द का एह्साह ज़्यादा करता है | (दही , लस्सी , निम्बू , अनार , संतरा , कीनू ,मोसम्मी साथ ही जिन फलो में एसिडिक एसिड ज़्यादा होता है उनके सेवन से इस रोग में रोगी को अधिक समस्या आदि का सामना करना पड़ता है | इसमें शरीर की पाचन क्रिया के साथ – साथ मासपेशिया भी बहुत कमज़ोर हो जाती है | परिणाम सवरूप रोगी धीरे – धीरे कमज़ोर होता रहता है उसको चलने – फिरने उठने – बैठने एवं लेटने में भी दिकत होती है | शरीर से फुर्ती खत्म हो जाती है | मुड़ने, करवट लेने में भी दर्द का एहसास होता है | 25 साल का रोगी भी अपने आप को 80 साल का महसूस करने लगता है | लम्बे समय तक यह रोग रहता है | पैर , कमर , कोनी, घुटने , गर्दन , एड़ी मुड़ने और अकड़ने लगते है | साथ ही रोगी की नज़र , याददाश्त भी कमज़ोर होने लगती है और रोगी अपने दिनचर्या के कार्य में भी दुसरो पर निर्भर हो जाता है यह रोग पुरुष और महिलाओं में सामान्य पाया जाता है | विज्ञान की बात करें तो गढ़िया पर अत्यधिक शोध किया गया, लेकिन विज्ञानं इसे पूरी तरह समझ नहीं पाया है | 90 % विशेषज्ञ एवं डॉक्टर इसमें रोगी को पेनकिलर ( दर्दनिवारक ) के साथ steroids देते है | जिससे रोगी ठीक होने की जगह और गंभीर भी मार से गृस्त हो जाता है | अगर संक्षेप में कहे तो allopathy एवं अन्य पद्धतियों (थेरेपी ) में इसका इलाज ला – इलाज माना गया है |
1) पहली अवस्था में नसों में खिचाव, शरीर में अकड़न, नसों का सकत होना, शरीर के लचीलेपन में कमी आना ये शुरुवाती रूप में गठिया की शुरुवात है | किसी-किसी case में रोगी शरीर में हल्की दर्द का भी अहसास करता है | खट्टा एवं ठंडी तासीर वाले भोजन ग्रहण करने पर रोगी उठने-बैठने में भी असहाय महसूस करता है | अगर रोगी की और ध्यान ना दिया जाये तो गठिया का शुरुवाती रूप गठिया के दूसरे चरण में प्रवेश करता है | जो पहली अवस्था से अधिक तकलीफ देना वाला और हानिकारक होता है |
2 ) गठिया के दूसरे चरण में रोगी शरीर के कुछ जोड़ो में दर्द का एहसास करना शुरू करता है जो समय के साथ-साथ बढ़ता जाता है | उदाहरण के तोर पर कलाई, हाथो के उंगलियों के जोड़ , घुटने , पेरो की एड़ी और ऊँगली की जोड़ो से दर्द की शुरुवात होती है | ऐसे वक्त में रोगी अधिकतर रोगी दर्द निवारक दवाई का प्रयोग करता है कई पद्धतियों में भी गठिया के पर इलाज पर कुछ Vitamins, और Painkiller ही दी जाती है | ऐसे इलाज से रोगी ठीक होने की जगह और गंभीर गठिया की और अग्रसर होता जाता है | इसमे बहुत से चिकित्सक रोगी को अत्यधिक परहेज बताते है जो आगे चलकर शारीरिक कमजोरी का मुख्य कारक बन जाते है | गठिया के रोगी को केवल समय से परहेज ही अनिवार्य है | अनावश्यक परहेज रोगी को कमजोर बनाते है | जिससे रोगी को नाड़ी तंत्र बहुत अधिक प्रभावित होता है और यह रोगी तीसरी अवस्था में प्रवेश कर जाता है |
3) गठिया की तीसरी अवस्था गंभीर परिणाम लिए होती है इसमे रोगी का पाचन तंत्र प्रभवित होता है इसके साथ ही
मानसिक तोर भी रोगी प्रभावित होने लगता है | इस अवस्था में रोगी सुबह बिस्तर से उठ नहीं पाता उसे पलटने में भी
दिकत होती है जब तक रोगी गर्म पानी से स्नान न करे और धुप मैं कुछ घंटे न बैठे और मालिश करने के बाद ही चलने
फिरने में थोड़ा सहज हो पाता है | इस अवस्था में रोगी के हाथ पैर में तेज़ दर्द होने लगता है साथ ही हाथ – पैर टेड़े
होने लगता है कमर और गर्दन में जुकन (मोड़) आने लगता है शरीर की नस्से सख्त हो जाती है रोगी की चमड़ी रूखी
(dry) होने लगती है | रोगी में खून की कमी भी होने लगती है साथ ही रोगी को देखने, सुनने और समझने की क्षमता
कम हो जाती है | रोगी की सामान्य जीवन अस्त – व्यस्त हो जाती है | वह अपना अधिकतर समय बिस्तर और आराम
करने में व्यतीत करने लगता है इसका मुख्य कारण है की अन्य पद्धतियों में गठिया की इलाज का ला – इलाज कहा गया
है |
Note: –
दर्द निवारक औषधि गठिया का इलाज नहीं है | गठिया में दर्द निवारक औषधि लेने से गठिया लगातार बढ़ता चला
जाता है और ठीक नहीं होता इसकी पहचान इस तरह से की जाती है यदि रोगी को औषधि लेने पर ही आराम होता है
और औषधि न लेने पर दर्द शुरू होता है तो रोगी को ऐसे इलाज से सख्त परहेज करना चाहिए | Steroids, Neuro
Pain killers, आदि का परहेज गठिया में भयंकर हानि कारक होता है | यह रोगी को आजीवन स्थाई तोर पर रोगी
बना देता है | Painkiller, Steroids से नाड़ी तंत्र को सख्त कर देता है और damage कर देता है |
4) इस अवस्था में रोगी के हाथ, पैर, कमर, गर्दन, कंधे, कोनिया, गुठने, पूरी तरह से टेड़े हो जाते है | इनके टेड़े होने के मुख्य कारण है दूसरा जोड़ो का भी स्नायुबंधन (Ligaments) में होता है जो दोनों जोड़ो को आपस में जोड़ता है | गठिया के 3 , और 4 अवस्था में वह Ligament धीरे – धीरे सख्त होता चला जाता है और अपना आकार बदल देता है जिस Ligaments का काम शुरुवात का लचीलापन जोड़ो को खोलता है और बंद करता सिकुड़ता था वही Ligaments अब सख्त हो कर निष्क्रिय हो जाता है जिसके परिणामसवरूप व्यक्ति एक अपाहिज की तरह दिखने लगता है जो पूरी तरह से दूसरे व्यक्ति पर आश्रित हो जाता है | ना ही व्यक्ति सीधी तरह से खड़े हो पाता है, लेट पाता है आदमी का वजन बहुत तेज़ी से घटता है इसमे 80% रोगी 45kl से या उसे कम हो जाता है गठिया का इलाज केवल आयुर्वेद में मौजूद है | आयुर्वेद गठिया के दर्द पर ही काम नहीं करता , गठिया के रोग को ठीक करने के लिए तंत्रिका नाड़ी को पुष्ट करने पर ज़ोर देता है और तंत्रिका नाड़ी पर कार्य करने से रोगी का दर्द ठीक हो जाता है | साथ ही दर्द दुबारा नहीं होती है | परिणामसवरूप 20-25 वर्ष पुराना रोगी भी पूर्ण तरह से सवस्थ हो कर दौड़ने लगता है और सामान्य जीवन जीने लगता है और अपने दिनचर्या के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता है | केवल 1 वर्ष के इलाज से ही रोगी पूर्ण रूप से सवस्थ हो जाता है |
गठिया का इलाज केवल आयुर्वेद में मौजूद है | आयुर्वेद गठिया के दर्द पर ही काम नहीं करता , गठिया के रोग को ठीक करने के लिए तंत्रिका नाड़ी को पुष्ट करने पर ज़ोर देता है और तंत्रिका नाड़ी पर कार्य करने से रोगी का दर्द ठीक हो जाता है | साथ ही दर्द दुबारा नहीं होती है | परिणामसवरूप 20 – 25 वर्ष पुराना रोगी भी पूर्ण तरह से सवस्थ हो कर दौड़ने लगता है और सामान्य जीवन जीने लगता है और अपने दिनचर्या के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता है | केवल 1 वर्ष के इलाज से ही रोगी पूर्ण रूप से सवस्थ हो जाता है |
क्या कोई आयुर्वेदिक उपचार है जो गठिया के दर्द को ठीक करने का काम करता है? आयुर्वेद में कुछ जड़ी बुटिया एवं घरो में मौजूद (ingredients) से इस रूप में रोगी जो है दर्द से छुटकारा पा सकता है | हल्दी वाला दूध लसन वाला दूध खजूर वाला दूध शहद वाला दूध शिलाजीत का सेवन, अशवगंधा के सेवन से | तेल मसाज के लिए कौन सा तेल यूज़ करे? तिल का तेल, अलसी का तेज़, लॉन्ग का तेल, बादाम का तेल आदि एक चुटकी हल्दी (1gm हल्दी) और बादाम 4-piece और शिलाजीत (1 gm) अशवगंधा, मूंगफली 10gm, इन सबका पॉवडर बनना कर 500ml दूध में 10 minutes, धीमे आंच में पक्का कर, ठंडा कर पीने से 1 महीने सेवन करने से इस रोग में अत्यधिक आराम होता है | इसका सेवन करने से पहले अपनी अवस्था का पूर्ण विशेषज्ञ से परामर्श कर ले, परामर्श करने के पश्चात् इस नुस्खे का प्रयोग करें| गठिया रोग में पाचन तंत्र मजबूत होना अत्यधिक आवश्यक है 95% रोगी में पाचन तंत्र कमजोर पाया जाता है जिस कारण रोगी ठीक नहीं हो पाता है साथ ही रोगी को कबज की शिकायत नहीं होनी चाहिए | मिक्स फल में क्या ले सकते है? 500 gm मिक्स फ्रूट खाना से 1-hour पहले का सेवन करने चाहिए भोजन में देसी घी, सरसो के तेल, दाले और Carbohydrates आदि चीज़े का सेवन करें | प्रोटीन में: – काला चना, सोयाबीन का प्रयोग ज़्यादा करें | इस में मिस्सी रोटी खाना ज़्यादा फायदेमंद होता है | non-veg का प्रयोग ज़्यादा फायदेमंद नहीं होता है | ऐसे रोगी का सात्विक भोजन आदि प्रयोग करना चाहिए | जिससे रोग जड़ से खत्म हो जाये और रोग दुबारा ना हो | परहेज: – भोजन से परहेज: – ठंडी तासीर वाली भोजन से बचे |